अनुक्रमणिका-
- न्यूटन का नियम 3 व्याख्या
- तत्वज्ञान उदाहरण
- वायु प्रवाह प्रकार
- वैज्ञानिक पराक्रम के माध्यम से व्याख्या
- उत्तराखंड का धारली गांव व्याख्या का उदाहरण
- उत्तर
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- यदि न्यूटन (Newton) के क्रिया एवं प्रतिक्रिया सिद्धांत -03 का अनुसरण करें तब हमें इस प्रश्न का उत्तर मिलता है। न्यूटन ने कहा कि,
अब एक दूसरे तथ्य
की बात करते हैं कि-
- हल्का व्यक्ति अपने व्यवहार में बहुत उड़ता है
- अर्थात यदि आप किसी व्यक्ति से बात भी नहीं करते हैं तो भी उसको देखकर अनुमान लगाते हैं
- कि इस के व्यक्तित्व मैं गहराई नहीं है अर्थात व्यवहार से बहुत हल्का व्यक्ति हैं।
- अर्थात-
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इसी को एक अन्य उदाहरण से समझते हैं कि -
- जब हमारी माँ रसोई में भोजन पका रही होती है मुख्य रूप से जब रोटियां बना रहीं होती है तब वह कैसे ज्ञान करती है की रोटी पकाने के लिए तवा गर्म हो चुका है?
- क्या वह इसके लिए तवे पर हाथ रखती है या कोई तापमान मापक्रम (Thermometer) उपयोग में लेती है?
- नहीं वह ऐसा नहीं करती अपितु वह तवे के ऊपर अपने हाथ को लेके जाती है तब तवे की ऊपर की वायु उनकी हथेली से टकराती है और स्पर्श ज्ञान के माध्यम से उनको ज्ञात हो जाता है की रोटी पकाने के लिए तवा तैयार हैं अथवा नहीं?
- क्योंकि गैस के माध्यम से जो निरंतर
तवे को ताप मिल रहा है उससे तवे के ऊपर की वायु गर्म हो गई है अर्थात जितना अधिक
ताप उतनी अधिक गर्म तवे की सतह तो उसी अनुपात में गर्म तवे के ऊपर की वायु।
हम जानते हैं कि वायु दो प्रकार से प्रवाहित होती है-
- एक पवन के रूप में जब, "वायु दाब प्रवणता के प्रभाव में अधिक दाब के क्षेत्र से कम दाब के क्षेत्र की और क्षैतिज स्तर पर चलती है" तब इसको पवन कहते हैं।
- इसके साथ ही वह वायु प्रवाह जिसमें वह ऊर्ध्वाधर गमन करती है अर्थात सतह से ऊपर की ओर तब इसे "वायु धारा" कहते हैं।
- वायु धारा प्रवाह के अंतर्गत संवहन धाराओं का निर्माण होता है और इसी के परिणाम स्वरूप मां को पता लग जाता है की तवा अनुमानित रूप से कितना गर्म हो चुका है?
- क्योंकि तवे के ऊपर की वायु ऊर्ध्वाधर संवहन धाराओं का निर्माण कर रही है
- जिसके माध्यम से वायु हल्की होकर ऊपर की ओर उठती है और मां की हथेली से टकराती है
- उसके ताप का अनुमान लगाकर तवे के ताप का अनुमान कर लिया जाता है।
अब एक तीसरा उदाहरण लेते हैं-
- जिसमें आपकी या प्रत्येक व्यक्ति की एक निश्चित भार को वहन करने की क्षमता होती है और
- जब यह क्षमता समाप्त हो जाती है तब आप उस भार को नीचे की ओर छोड़ देते हैं।
- तो यदि मेघ (बादल) में भी पानी का भार अधिक हो गया है
- और वह किसी कारण से शनै: शनै:अर्थात धीरे-धीरे वर्षा के रूप में इसको नीचे नहीं छोड़ पा रहा था तो वह एक झटके से इस पानी को नीचे गिरा देगा तब ऐसा लगेगा कि कुछ फट गया है तो क्या बादल फट गया है?
बस इन 03
उदाहरण के माध्यम से
- आईए अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण की ओर चलते हैं। इस चित्र को ध्यान से देखिए।
- यह चित्र ताप और दाब के मध्य एक अनुपातिक
संबंध स्थापित कर रहा है जहां दोनों का संबंध व्युत्क्रमानुपाती है अर्थात दोनों,
न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार, एक दूसरे के
विपरीत प्रतिक्रिया देते।
- तो यदि ताप में वृद्धि होगी तो वायुदाब,
साधारण भाषा में उस स्थान पर वायु का भार, कम
हो जाएगा और यदि ताप में कमी आएगी तो उसी स्थान पर वायु भार अर्थात वायुदाब बढ़
जाता है।
- अब यदि किसी स्थान के ताप में वृद्धि होती है तब उसका एवं उस जलाशय के निकटवर्ती स्थान के वायु ताप मे भी अनुपातिक वृद्धि होगी और यदि ऐसा होता है तो निश्चित है कि उस स्थान का वायुदाब उसी अनुपात में कम हो जाएगा
- अर्थात एक निम्न वायुदाब क्षेत्र का निर्माण होता है और जैसा की मां का अनुभव बता रहा था कि तवा गर्म हुआ है अथवा नहीं
- क्योंकि जब संवहन धारा का निर्माण हो रहा था ठीक तब उस क्षेत्र विशेष में वायु संवहन धारा के माध्यम से गर्म होकर ऊपर उठेगी।
यदि-
- किसी जल राशि- नदी तालाब,
झील, सागर, समुद्र - की
सतह का तापमान 27 डिग्री सेंटीग्रेड या उससे अधिक हो गया है
तब वहां पर वाष्पीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी।
- तो तब क्या होगा जब वह स्थान किसी पर्वतीय घाटी में है तो वहां का ताप और अधिक तेजी से वृद्धि करेगा क्योंकि निकटवर्ती स्थलाकृति अर्थात पर्वत की घाटी उस पर और अधिक ताप आरोपित करेगी।
तो परिणाम में क्या-
- फिर वही जितना अधिक ताप उतनी तीव्र सांवहानिय धारा और उतना अधिक तीव्र वाष्पीकरण।
- सांवहानिय धारा अर्थात वायु वाष्पीकरण के साथ गर्म होकर पहाड़ के सहारे ऊपर की ओर उठ रही है।
- अब इस प्रक्रिया का सामान्य परिणाम है कि
- जैसे-जैसे वाष्पीकृत वायु ऊपर उठती चली जाएगी संघनन ( Condensation) की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी और इस प्रकार मेघ निर्माण हो जाता है।
- हम जानते हैं कि जैसे-जैसे वायु ऊपर की ओर उठती है तापमान कम होने पर संघनन की प्रक्रिया होती है
- और एक निश्चित वायुदाब का निर्माण होने पर मेघ की आद्रता अर्थात उसमें उपस्थित जल की मात्र पूर्ण हो जाती है।
- साधारण शब्दों में बादल पूरी तरह से संघनन जल से भर चुका है
- और कहता है - नहीं अब और अधिक क्षमता नहीं है पानी भरने की।
Note-
- किसी वायु राशि की आद्रता को यदि बढ़ाना
है अर्थात उसमें 100% से अधिक जल भरना है तो
हम जल न भरकर उसके तापमान में कमी कर देते हैं तब उसकी आद्रता स्वत ही 100% से अधिक हो जाती है।
तो अब बदल क्या करेगा?
- जैसे-जैसे तापमान कम होगा वैसे-वैसे बदल अपने अंदर के जल का भार संतुलन बनाने के लिए 100% से अधिक जल को छोटी-छोटी बूंद के रूप में, चलते चलते तथा धीमे-धीमे नीचे आते, धरती की सतह पर भेज देता है और इस प्रकार वर्षा होती है।
- तो यदि सामान्य प्रक्रिया में इस प्रकार वर्षा हो तो हम लोगों को कितना अच्छा लगता है।
- लेकिन जब इस प्राकृतिक घटना में व्यवधान उत्पन्न होता है तब यही बादल फटने की घटना में परिवर्तित होती है।
- वास्तव में इस प्रक्रिया में संतुलन की स्थिति असंतुलित प्रक्रिया में परिवर्तित होती है।
- ध्यान दीजिए हम लोग यहां पर प्रक्रिया शब्द का उपयोग कर रहे हैं अर्थात जो भी कार्य होगा वह चरणबद्ध तरीके से होगा।
- आवश्यकता से अधिक तीव्र तापमान बहुत अधिक तीव्र संवहन धारा का निर्माण करेगा जो की लगातार तीव्र वेग के साथ ऊपर की ओर उठती है
- इसी के समकक्ष ऊपर संघनन की प्रक्रिया में तीव्र “कपासी मेघ बादल” का निर्माण हो रहा है, लेकिन
- समस्या यह है की नीचे से आने वाली तीव्र संवहन धारा अब प्राकृतिक चरणबद्ध प्रक्रिया का पालन नहीं कर पा रही है
- परिणाम स्वरूप बादल वर्षा करने के लिए नीचे की ओर नहीं आ
पा रहा है और लगातार उसमें उसकी भार वहन क्षमता से अधिक जल एकत्रित हो रहा है।
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अब-
- यहां न्यूटन के तीसरे नियम को फिर से आरोपित करते हैं जिसका परिणाम यह निकलेगा कि अब बदल इतना अधिक भारी हो चुका है कि संवहन धारा प्रवाह निष्प्रभावी हो गया है या संवहन धारा प्रवाह अपने आप में क्षीण (कमजोर) हो गया है और बादल को अब एक अवसर मिलता है अपने अंदर से अतिरिक्त जल को निकालने का।
- लेकिन अब यह प्रक्रिया इतनी तीव्र गति से होगी कि अत्यधिक वेग के साथ जल धरती पर नीचे मूसलाधार रूप में गिरता है।
- अनुमान यह है कि जब 1 घंटे में एक वर्ग किलोमीटर में 10 करोड़ लीटर पानी
गिर जाता है तब इसे बादल फटना कहते हैं।
अब प्रश्न यह है कि यह बादल फटने की घटना कहां और कब होती है?
- इसको हम उत्तराखंड के धराली गांव की घटना को उदाहरण के रूप में उल्लेखित कर कर समझते हैं।
- यह घटना 5 अगस्त 2025 को घटित हुई थी
- अब अगर समय के अनुसार ध्यान दें तो भारत में मानसून ऋतु का समय चल रहा है अर्थात भारत का वायुदाब गर्मी के कारण इस समय बहुत कम है
- जिस कारण से पवन हिंद
महासागर से होते हुए "अरब सागर शाखा" तथा "बंगाल की खाड़ी शाखा" के रूप में भारत में
आद्रता अर्थात वर्षा लेकर आती है।
- इसके साथ ही यह तथ्य भी सर्व-विदित है कि पृथ्वी का तापमान निरंतर बढ़ रहा है हम जानते हैं कि "पेरिस समझौता/ Paris Agreement" भी खंडित हो चुका है।
- धराली गांव घटना के संबंध में जो रिपोर्ट आई उसने बताया गया कि उसे क्षेत्र में जंगल के कटान के कारण मीथेन (CH4) गैस की मात्रा आवश्यकता से अधिक मिली है और हम जानते हैं कि मीथेन गैस एक "हरित ग्रह" गैस है।
- अंततः परिणाम यह निकला कि उसे क्षेत्र में तापमान सामान्य से अधिक था।
अब हम पढ़ चुके
हैं कि -
- अधिक तापमान कम वायुदाब इसलिए अधिकतम तापमान न्यूनतम वायुदाब।
- न्यूनतम वायुदाब अर्थात अत्यधिक तीव्र संवहन धाराओं का निर्माण
- परिणाम स्वरूप सामान्य से बहुत अधिक संघनन की प्रक्रिया
- जिस कारण से “तीव्र एवं विशाल कपासी मेघ” का निर्माण।
- तीव्र संवहन धाराएं निरंतर तीव्र एवं विशाल कपासी मेघ का निर्माण करेंगी तथा मेघ को अनुमति नहीं देगी कि वह सामान्य रूप से वर्षा कर सके और
- अंततः परिणाम बादल फटने के रूप में सामने आया और एक बड़ा विध्वंस घटना के रूप में वहां पर हो गया।
अब प्रश्न यह है कि - यह एक प्राकृतिक
विध्वंस था अथवा मानवीय कृत विध्वंस?
- तो उत्तर बहुत स्पष्ट एवं सपाट है कि - यह
एक “मानवीकृत विध्वंस” है जिस पर प्राकृतिक चेहरा लगाकर
इसको एक आवरण दिया गया है जिसमें मानव अपने प्रकृति के प्रति नकारात्मक एवं अपराधी
कृत्य को छिपा रहा है।
प्रश्न- "बादल फटने" की परिघटना क्या है? व्याख्या कीजिए।
Q. What is the phenomenon of
cloudburst? Explain.
उत्तर-
- स्थान विशेष का तापमान वहां का वायु दाब निर्धारित करता है तथा दोनों एक दूसरे के व्युत्क्रमानुपाती तुलनात्मक संबंध व्यवहार करते हैं अर्थात तीव्र तापमान एक न्यूनतम वायुदाब का निर्माण करेगा।
- अधिक तापमान की उपस्थिति तीव्र संवहन धाराओं का निर्माण कर तीव्र संघनन की प्रक्रिया करती है तथा “कपासी मेघ” का निर्माण होता है। वृष्टि प्रस्फुटन /बादल फटने की घटना में यह प्रक्रिया अनियमित होती है जिसमें तीव्र संवहन धाराओं द्वारा संघनन अनियमित हो जाता है तथा साथ ही मेघ वर्षा नहीं कर पाते।
- संवहन धारा क्षीण होने की स्थिति में अथवा “मेघ जल भार अधिक” होने की स्थिति में अब एक तीव्र गति से,मूसलाधार रूप में जल धरती की सतह पर आता है जिसे "वृष्टि प्रस्फोट या बादल फटना" कहते हैं।
- उत्तराखंड में धराली गांव एक उदाहरण है जहां स्थानीय कारक में अधिक मिथेन की उपस्थिति ने एक असंतुलित तीव्र तापमान का निर्माण किया।
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