अनुक्रमणिका-
- प्रश्न की समझ
- प्रश्न से संबंधित व्याख्या
- प्रमुख रूप से डेल्टा निर्माण प्रक्रिया में प्राथमिक रूप से उपस्थित कारक
- पश्चिमी घाट एवं पूर्वी घाट की स्थलाकृति का अंतर
- आदर्श उत्तर
- साबरमती,
- लूनी,नर्मदा,
- सावित्री,
- तिलारी,
- मांडोवी (महादयी),
- शरावती ( श्रावस्ती ),
- नेत्रावती,
- बेदती,
- मांडवी,
- काली,
- पेन्नार,
- भरतपूझा,
- पंपा,
- नेय्यार
- गोदावरी प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लंबी (1465 Km) तथा सबसे बड़ी नदी है।
- इस नदी को "दक्षिण की गंगा" अर्थात "बुढ़ी गंगा" इसके "बृहद स्वरूप" के कारण कहां जाता है।
- "आध्यात्मिक दृष्टि" से कावेरी को दक्षिण की गंगा कहा जाता है।
व्याख्यान-
नदी प्रवाह के तीन चरण होते हैं -
- युवावस्था,
- प्रोण अवस्था एवं
- वृद्ध अवस्था, तथा डेल्टा स्थलाकृति निर्माण की प्रक्रिया नदी की वृद्ध अवस्था अर्थात तृतीय चरण का परिणाम है।
डेल्टा बनने की स्थिति में आवश्यक है कि-
- नदी की ढाल प्रवणता लगभग 0.5 ° (डिग्री) अर्थात लगभग शून्य के निकट होनी चाहिए।
- नदी जिस मार्ग पर प्रवाहित होकर आ रही है वह अधिकतम अवसादी चट्टानों का बना होना चाहिए परिणाम स्वरूप अवसाद पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सके
- क्योंकि हम जानते हैं की आग्नेय चट्टान तथा रूपांतरित चट्टानें कठोर चट्टान होती है जो की निम्न अवसादीकरण की प्रक्रिया में न्यूनतम अवसाद को उपलब्ध करवाती है।
इसी प्रवाह प्रकिया मे -
- नदी जब समुद्र के निकट अपने मुहाना बनती है, तो
- उससे पूर्व ही ढाल प्रवणता लगभग "0" डिग्री पर आ जाती है, तथा
- इसके साथ ही अधिक अवसादो के कारण नदी का जल भारी हो जाता है
- इन दोनों करणों के परिणाम स्वरूप नदी की इस भारी जल को ढोने की क्षमता जब समाप्त हो जाती है
- तब जल कई धाराओं में टूट जाता है जिसे वितरिका (Distributary) कहते हैं।
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चुकी -
- अवसादीकरण की प्रक्रिया में अवसाद की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध रहती है
- परिणाम स्वरूप जो भी वितरिका मुख्य धारा से पृथक होती है वह अपने किनारे पर अवसाद का निक्षेपण करते हुए तटबंध तथा संबंधित बाढ़ कृत मैदान का निर्माण करती है
- परिणाम स्वरूप एक ऐसा भू दृश्य स्थलाकृति सामने आती है जो की भौतिक ( Physics) के संकेत डेल्टा / Delta के समान दिखाई देता है जिसे नदी डेल्टा कहते हैं।
इस प्रकार हमने समझा कि डेल्टा निर्माण के लिए आवश्यक है-
- लगभग शून्य ढाल प्रवणता
- अवसाद की पर्याप्त मात्रा
- जल का भारी होकर मुख्य धारा से पृथक होकर नदी वितरिका निर्माण करना, तथा
- वितरिका के द्वारा अपने तटबंध पर अवसाद का निक्षेपण
इस प्रकार मुख्य धारा एवं वितरिका के मध्य अवसाद निक्षेपण के पश्चात एक नवीन स्थल आकृति भू दृश्य बनता है जो की डेल्टा कहलाता है।
अब यदि इन परिस्थितियों की उपस्थिति का हम तुलनात्मक अध्ययन पश्चिमी घाट पर करते हैं तब संज्ञान में आता है कि-
- भारत का ढलान पश्चिम से पूर्ण होने के कारण पश्चिम में भारत की भूमि एक कगार अर्थात पश्चिमी घाट पर व श्रृंखला के माध्यम से ऊंची उठी हुई है परिणाम स्वरूप पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला से पश्चिमी तट के मध्य ढाल प्रवणता सामान्य से अधिक है।
- इसके साथ ही यहां प्रमुखता से अग्नि एवं रूपांतर चट्टानी मिलती है परिणाम स्वरुप चट्टानों का अपरदन दर न्यूनतम है।
- पृथ्वी की सर्वाधिक प्राचीन स्थलाकृति होने के कारण चट्टानों का अपरदन अपनी प्रौण अवस्था को प्राप्त कर चुका है इस कारण से भी अपरदन दर न्यूनतम हो जाती है।
- यदि हम पश्चिमी घाट की आकृति का अध्ययन करते हैं तो समझ में आता है कि यह जलमग्न तट का उदाहरण है परिणाम स्वरुप यहां पर महासागरीय तरंगों द्वारा अपरदन की दर अधिक है इस कारण से तटीय स्थलाकृति पर जो थोड़ा बहुत निक्षेपण होता है वह भी महासागरीय तरंगों के माध्यम से अपरदित हो जाता है।
- एक अन्य तथा अप्रत्यक्ष कारण में हम जानते हैं कि दक्षिण पश्चिम मानसून का आगमन भारत में उसकी दो शाखाओं के माध्यम से होता है अरब सागर शाखा एवं बंगाल की खाड़ी शाखा।
- अरब सागर शाखा के लिए पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला एक अवरोध के रूप में कार्य करती है परिणाम स्वरूप भारत भूमि खंड का 03 प्रतिशत भाग होने के बाद भी यह 18% वर्षा जल को प्राप्त करती है।
- 4 माह के अंतराल पर इतना अधिक वर्षा का जल तीव्र निष्कासन कारण बनता है
- परिणाम स्वरुप एक बार पुनः तीव्र अपरदन की प्रक्रिया तटीय क्षेत्र में चलती है अर्थात जो थोड़ा बहुत निक्षेपण हुआ है वह भी तीव्र जल प्रवाह के कारण रहकर समुद्र में निक्षेपित हो जाता है।
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Note-
भूगोल की दृष्टि से प्रश्न एक स्पष्ट एवं सीधा कारण मांग रहा है कि बताइए पश्चिमी घाट पर डेल्टा निर्माण नदिया क्यों नहीं करती हैं।
अब यदि उत्तर की संरचना पर ध्यान दें तब आज की परिस्थितियों में डेढ़ सौ शब्दों के उत्तर में संरचना निम्नलिखित होगी-
- प्रस्तावना /परिचय
- डेल्टा निर्माण के लिए प्रयुक्त परिस्थितियों
- डेल्टा निर्माण की अनुपस्थिति के पश्चिमी घाट पर कारण
- निष्कर्ष
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प्रायद्वीपीय भारत किसे कहते हैं?
प्रायद्वीप की परिभाषा में यह एक ऐसा स्थल खंड जो कि-
- अपने तीन ओर से समुद्र जल राशि से घिरा हुआ होता है तथा
- एक छोर पर मुख्य भूमि से जुड़ा रहता है
- प्रायद्वीप स्थल खंड कहलाता है।
साधारण भाषा में
- यदि हम भारत के इस मानचित्र को देखते हैं तो पाते हैं कि
- दक्षिण, पश्चिम तथा पूर्व की ओर से दक्षिण भारत का क्षेत्र जल राशि से घिरा हुआ है
- जबकि उत्तर की
ओर में हिमालय के माध्यम से मुख्य भूमि क्षेत्र यूरेशिया (Eurasia) की प्लेट से जुड़ा हुआ
है।
इस प्रकार-
- विंध्य पर्वत श्रृंखला तथा उसके दक्षिण का क्षेत्र हिंद महासागर तक प्रायद्वीप भारत कहलाता है।
- उत्तर में इसके दो बिंदु रावली पर्वत श्रृंखला तथा राजमहल पहाड़ी है।
- पश्चिम में पश्चिमी घाट, पूर्व में पूर्वी घाट तथा दक्षिण में कन्याकुमारी एवं हिंद महासागर का क्षोर है।
प्रश्न -
प्रायद्वीपीय भारत में पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ डेल्टा क्यों नहीं बनातीं?
उत्तर-
नदी प्रवाह के तीसरे चरण की वृद्धावस्था में नदी डेल्टा के साथ अथवा डेल्टा के अभाव में अपने जल को समुद्र में प्रवाहित करती है। डेल्टा बनने के निम्नलिखित कारण है-
- शून्य ढाल प्रवणता
- अवसाद की पर्याप्त मात्रा
- जल का भारी होकर मुख्य धारा से पृथक होकर नदी वितरिका निर्माण करना, तथा
- वितरिका के द्वारा अपने तटबंध पर अवसाद का निक्षेपण
इन सभी कारको का अभाव हमको पश्चिमी घाट पर मिलता है-
- जहां तीव्र ढाल प्रवणता,
- कठोर आग्नेय तथा अवसादी चट्टानों की उपस्थिति एवं प्राचीनतम स्थलाकृति होने के कारण न्यूनतम अपरदन दर परिणाम न्यूनतम अवसाद उपलब्धता।
- पश्चिमी घाट के तट का जलमग्न तट होने के कारण महासागरीय तरंगों के द्वारा अपरदन करना।
- दक्षिण पश्चिम मानसून की स्थिति में एक त्वरित जल का पश्चिम तटीय क्षेत्र से निष्कासन जो कि यहां के निक्षेपित अवसादो की अपरदन दर में वृद्धि करता है
इस प्रकार इन सभी स्थिति के कारण पश्चिमी घाट तटीय क्षेत्र पर नदी एक डेल्टा का निर्माण न करके एस्टुअरी/ Estuary बनती है और सीधे अपने जल को महासागर में प्रवाहित कर देती है परिणाम: हमें पश्चिमी घाट पर डेल्टा निर्माण नहीं मिलता है।
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