प्रधान शब्दावली
अमावस्या/ Amavasya
- हिंदू कैलेंडर के अनुसार सामान्य रूप से प्रत्येक माह को दो भागों में विभाजित किया गया है।
- यह विभाजन चंद्रमा की कला के आधार पर किया गया है।
- माह का प्रथम भाग कृष्ण पक्ष से प्रारंभ होता है एवं चंद्रमा का दृश्यआत्मक आकार धीरे धीरे न्यूनतम की ओर आगे बढ़ता है एवं 14 दिन की रात्रि को हमें आकाश में चंद्रमा दिखाई नहीं देता हैं।
- इस प्रकार पूर्ण रात्रि अंधकार में रहती है एवं इस रात्रि को अमावस्या कहते हैं।
पूर्णिमा/Poornima
- माह के वह 14 दिन जब चंद्रमा का दृश्यआत्मक आकार न्यूनतम से अधिकतम की ओर वृद्धि करता है एवं 15 दिन पूर्ण रूप से चमकता है तब इसका अवधि को शुक्ल पक्ष एवं 15 वे दिन की इस रात्रि को पूर्णिमा कहते हैं।
नवीन चंद्र / New
Moon
- अमावस्या की रात्रि नवीन चंद्र रात्रि कहलाती है क्योंकि इसके पश्चात अगली रात्रि से शुक्ल पक्ष प्रारंभ होता है।
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खगोलीय पिंड / Celestial Body
- सूर्य,
- चंद्रमा,
- तारे,
- शुद्र ग्रह,
- उपग्रह,
- उल्का पिंड तथा
- धूल के कण
"ऐसे सभी पिंड जोकि दृश्य आत्मक है एवं उनका अपना एक निश्चित द्रव्यमान तथा अंतरिक्ष में विद्यमान है खगोलीय पिंड कहलाते हैं।"
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तारा/ STAR
- जिसके पास अपनी स्वयं की ऊर्जा अर्थात ऊष्मा एवं प्रकाश है तारा कहलाता है।
- हमारा सूर्य एक तारा है।
- तारे को उसकी ऊर्जा नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त होती है जिसके अंतर्गत हाइड्रोजन गैस हीलियम में परिवर्तित होकर ऊर्जा का उत्पादन करती है।
नक्षत्र मंडल / Constellations
- ब्रह्मांड में तारे समूह के रूप में भिन्न भिन्न प्रकार की आकृतियों का निर्माण करते हैं तब उन्हें नक्षत्र मंडल कहते हैं।
अर्सा मेजर / URSA
MAJOR
- यह नक्षत्र मंडल का एक उदाहरण है
बिग बियर/ BIG BEAR
- नक्षत्र मंडल अर्सा मेजर को अंग्रेजी भाषा में बिग बीयर कहते हैं।
सप्त ऋषि/ SAPT
RISHI
- सप्त ऋषि इसी प्रकार के तारों के समूह का एक नक्षत्र मंडल है जोकि अरसा मेजर का भाग है।
ध्रुव तारा/ POLE
STAR
- ध्रुव तारा जिसको हम "उत्तरी तारा" भी कहते हैं उत्तर दिशा में स्थापित होता है।
- ध्रुव तारा उत्तर दिशा का बोध कराता है।
ग्रह /PLANET
- जिनके पास स्वयं का ऊष्मा एवं प्रकाश नहीं होता,
- एक निश्चित कक्षा एवं समय (365.25 Days) के अंतर्गत सूर्य की परिक्रमा करते हैं,
- अपना ताप एवं प्रकाश सूर्य से ग्रहण करते हैं, तथा
- किसी अन्य ग्रहों की कक्षा में संक्रमण नहीं करते हैं
- ग्रह कहलाते।
आंतरिक गृह एवं
बाह्य ग्रह/ Inner Planet And
Outer Planet-
- सौरमंडल की संरचना में प्रारंभ के चार ग्रह आंतरिक ग्रह कहलाते है जबकि अंत के चार ग्रह बाह्य ग्रह कहलाते हैं।
- प्रारंभ के चार ग्रह "स्थलीय ग्रह" हैं जबकि अंतिम चार ग्रह "गैसीय ग्रह" कहलाते हैं।
- आंतरिक गृह एवं बाह्य ग्रह की सीमा रेखा क्षुद्रग्रह पेटी होती है।
- आंतरिक ग्रह इसलिए आंतरिक ग्रह कहलाते हैं क्योंकि वह सूर्य के ताप के प्रभाव में रहते हैं जबकि बाहरी ग्रह पर केवल सूर्य के प्रकाश का प्रभाव है ताप का नहीं।
सौर मंडल / SOLAR
SYSTEM
1. सूर्य,
2. आठ ग्रह,
3. शुद्र ग्रह,
4. धूमकेतु,
5. उपग्रह,
6. उल्का पिंड एवं
7. धूल के कणों से मिलकर एक मंडल का निर्माण होता है तथा
- इस मंडल के केंद्र में सूर्य है
- जोकि अपने गुरुत्वाकर्षण बल, साधारण भाषा में खिंचाव बल, के द्वारा सभी को बांधे रखता है।
- इस प्रकार इस मंडल को सौरमंडल अर्थात सूर्य का मंडल कहते हैं।
खिंचाव बल
/ PULLING FORCE
- वह बल जिसके माध्यम से सूर्य सौरमंडल को बांधे रखता है खिंचाव बल कहलाता है।
कक्षा/ ORBIT
- कोई ग्रह अथवा खगोलीय पिंड जब-
- एक निश्चित पथ लंबाई के साथ
- एक निश्चित दिशा में
- एक निश्चित कोड़ पर
- किसी अन्य ग्रहों की कक्षा में संक्रमण न करते हुए
- सूर्य के चारों चक्कर लगाता है
- उस ग्रह की कक्षा कहलाती है।
जुड़वा ग्रह /TWIN
PLANET
- आकार एवं आकृति में लगभग पृथ्वी के समान होने एवं दिखने के कारण शुक्र ग्रह को पृथ्वी का जुड़वा ग्रह भी कहते हैं।
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भू आभ / GEOID
- वह अपने ध्रुवों पर थोड़ी सी चपटी है एवं मध्य से फूली हुई है।
- इस प्रकार बनी हुई पृथ्वी की इस आकृति को भू-आभ कहते हैं।
नीला ग्रह/ BLUE
PLANET
- पृथ्वी की सतह का लगभग तीन चौथाई भाग अर्थात 75% भाग जलमग्न है।
- हम जानते हैं कि शुद्ध जल नीले रंग का दिखाई देता है, जिस प्रकार सतह के 75% भाग का जल नीलाहोने के कारण पृथ्वी नीले रंग की दिखाई देती है इसलिए इस को नीला ग्रह भी कहते हैं।
पृथ्वी पर जीवन की अनुकूल
परिस्थितियां
जीवन की उत्पत्ति एवं पोषण के लिए आवश्यक है की एक
1. ठोस सतह,
2. जल की उपलब्धता एवं
3. अनुपातिक मात्रा में ताप एवं
4. श्वसन क्रिया के लिए ऑक्सीजन की उपलब्धता हो।
- यह सभी आहर्यता पृथ्वी के द्वारा पूर्ण की जाती है इसी कारण से पृथ्वी पर जीवन की अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण होता है।
उपग्रह /SATELLITES
- एक निश्चित कक्षा के अंतर्गत ग्रहों की परिक्रमा करते हैं
- अपना ताप एवं प्रकाश सूर्य से ग्रहण करते हैं
कृत्रिम उपग्रह /
ARTIFICIAL SATELLITES
- मनुष्य द्वारा निर्मित वह यंत्र जो की "अंतरिक्ष संस्था" के द्वारा अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किए जाते हैं कृत्रिम उपग्रह कहलाते हैं।
- उदाहरण के लिए भारत की अंतरिक्ष संस्था का नाम, "भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था Indian Space Research Organisation - ISRO" है
- जिसके माध्यम से विभिन्न प्रकार के उपग्रह, अनेक प्रकार के अन्वेषण विषयों के लिए अंतरिक्ष में प्रक्षेपित अर्थात छोड़े जाते हैं इन्हें कृत्रिम उपग्रह कहते हैं।
अर्थात -
- उपग्रह संज्ञा का एक ऐसा रूप
- जो कि मनुष्य द्वारा निर्मित है प्रकृति द्वारा नहीं कृत्रिम उपग्रह कहलाता है, किंतु
- वह काम प्राकृतिक ग्रह के समान ही पृथ्वी के चारों ओर एक निश्चित कक्षा में उसकी परिक्रमा करके संबंधित विषय के संबंध करता है कृत्रिम उपग्रह कहलाता है।
- उदाहरण के लिए जुलाई 2025 में ISRO के द्वारा "निसार NISAR" नामक उपग्रह अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया जिसका मूल विषय पृथ्वी की सतह में होने वाली सुक्ष्म परिवर्तनों का अध्ययन करना है।
शुद्र ग्रह/ASTEROIDS
👉प्रायद्वीपीय भारत में पश्चिमी घाट की नदियाँ डेल्टा नहीं बनाती। क्यों? !! पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ !! प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ !! सबसे बड़ी लंबी नदी !! प्रमुख नदियां !! प्रायद्वीपीय भारत किसे कहते हैं? !! नदी डेल्टा क्या है? !! Nadi delta kya hai? kaise banati hai ?
- हमारे सौरमंडल में आठ ग्रह है, जिन का विभाजन दो वर्गों में क्रमशाह स्थलीय ग्रह एवं गैस ग्रह के रूप में किया गया है।
- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल स्थलीय ग्रह हैं।
- बृहस्पति, शनि, अरुण, एवं वरुण गैसीय ग्रह है।
- स्थलीय एवं गैस से ग्रहों के मध्य एक पेटी के आकार की खगोलीय पिंडों की एक श्रंखला मिलती है जिन्हें छुद्र ग्रह कहते हैं।
- माना जाता है कि यह स्थलीय ग्रहों के अवशेष हैं परिणाम स्वरूप इन्हें अवशेषी ग्रह भी कहते हैं।
- खगोल शास्त्रियों के अनुसार इनमें ग्रह बनने की सभी योग्यताएं हैं परंतु बृहस्पति के द्वारा लगने वाले अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण बल के कारण यह पूर्ण ग्रह में परिवर्तित नहीं हो पाते।
उल्का पिंड/ METEORS
- सूर्य हमारे सौरमंडल का केंद्र है।
- कुछ खगोलीय पिंड सूर्य को केंद्र मानकर अनिश्चित कक्षा के साथ सौरमंडल में विचरण करते रहते हैं।
- अर्थात उनकी कोई निश्चित कक्षा नहीं होती
- उल्का पिंड की उत्पत्ति "शुद्र ग्रह" एवं प्रमुख रूप से "धूमकेतु" से मानी गई है
- उल्का पिंड जब पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तब घर्षण के परिणाम स्वरुप ताप में वृद्धि होती है एवं यह एक तारे के समान प्रकाश उत्पन्न करते हैं।
- इन्हें ही उल्का पिंड कहा जाता है।
- पृथ्वी के निर्माण में उल्का पिंड का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है, इसी कारण से इन्हें पृथ्वी का रचनात्मक बल भी कहते हैं।
खगोल शास्त्री /ASTROLOGIST
- विज्ञान की वह पद्धति जिसके अंतर्गत वैज्ञानिक ब्रह्मांड का अध्ययन करते हैं खगोल शास्त्री कहलाते हैं।
आर्यभट्ट /ARYABHATTA
- भारत एवं प्राचीन विश्व के प्रमुख खगोल शास्त्री जिन्होंने पांचवी शताब्दी में गणना के आधार पर वक्तव्य दिया था कि सूर्य सौरमंडल के केंद्र में है तथा पृथ्वी एवं अन्य ग्रह जिस की परिक्रमा करते हैं।
- इसी पक्ष को विश्व पटल पर मान्यता 16 वीं शताब्दी के प्रारंभ में खगोल शास्त्री कॉपरनिकस की गणना को आधार बनाकर सत्यापित किया गया।
मंदाकिनी /GALAXY
1. तारे
2. खगोलीय पिंड
3. अंतर तरकिये ग्रह
4. धूल एवं
5. गौड़ तत्व का मिश्रण है मंदाकिनी कहलाता है।
- सर्वाधिक साधारण शब्दों में तारों का एक विशाल समूह मंदाकिनी कहलाता है।
अकाश गंगा/ MILKY
WAY
- वह मंदाकिनी जिसमें हमारा सौरमंडल स्थित है उसका नाम अकाश गंगा है।
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प्रश्न उत्तर
01 e-
इसका प्रमुख कारण चंद्रमा का घूर्णन काल एवं परिक्रमा काल एक जैसा एक समान अर्थात 27 दिन का होना है।
परिणाम स्वरूप हम चंद्रमा का केवल एक ही पक्ष देख पाते हैं।
03
a- तारे, नक्षत्र
b- मंदाकिनी ।
c- चंद्रमा।
d- पृथ्वी।
e- ताप , प्रकाश



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