गुरुवार, 25 सितंबर 2025

NCERT-भूगोल-कक्षा-07-अध्याय 02-संकेंद्रण परत क्या है-sankendran परत kya hai-भूपर्पटी किसे कहते हैं-भूपर्पटी का चित्र-भूपर्पटी क्यों महत्वपूर्ण है-विशेषताएं बताइए-भूपर्पटी की गहराई कितनी है-सियाल एवं सीमा में अंतर-प्रवार का अर्थ-क्रोड क्या है-क्रोड का घनत्व कितना है-खनिज किसे कहते हैं-खनिज की विशेषताएं बताइए-शैल किसे कहते हैं-शैल चक्र क्या है-Plutonic rock meaning in hindi-अंतर्भेदी आग्नेय शैल किसे कहते हैं-अंतर्भेदी आग्नेय चट्टान और परतदार चट्टान-परतदार चट्टान का निर्माण कैसे होता है-Metamorphic rock meaning in hindi-शैल चक्र का चित्र-शैल चक्र किसे कहते हैं-Rock cycle in hindi

 

प्रधान शब्दावली




संकेंद्रण परत/ CONECNTRIC LAYERS


  • हमें ज्ञात है कि हमारी पृथ्वी एक गोलाकार आकृति में है तथा पृथ्वी की आंतरिक संरचना में अनेक प्रकार से विभिन्नता है।
  • यह विभिन्नता हमें परत के रूप में मिलती है जोकि पृथ्वी के केंद्र को केंद्र मानकर उसके चारों लिपटी हुई रहती हैं।
  • इन्हीं ही संकेंद्रण परत कहते हैं।





भू पर्पटी/ CRUST



  • इन्हीं संकेंद्रण परत में पृथ्वी की सबसे बाहरी परत, जिस पर हम लोग निवास करते हैं, उसे भूपर्पटी कहते हैं।
  • पृथ्वी की भूपर्पटी एक ठोस एवं भंगुर संरचना है।

 

महादीप संहति एवं समुंद्री सतह/ CONTINENTAL MASS & OCEAN SURFACE



  • पृथ्वी की भूपर्पटी मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित है –
  • ठोस एवं स्थलीय भाग महादीप संहती तथा
  • समुद्री सतह।
  1. महाद्वीप के भाग पर भूपर्पटी की औसत मोटाई लगभग 35 किलोमीटर है
  2. जबकि समुद्री सतह पर इसकी औसत मोटाई लगभग 00-05 किलोमीटर है।




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सियाल एवम् सीमा/ SIAL & SIMA


  • भूपर्पटी की महाद्वीपीय संगठित खनिज संरचना में सिलीकेट /SILICATE (Si) तथा एलुमिनियम /ALUMINIUM (Al) खनिज तत्व मिलते हैं जिसे समग्र रूप से "सियाल SiAl" बोला जाता है।
  • इसी प्रकार समुद्री सतह की संरचना में सिलीकेट एवं मैग्नीशियम के खनिज मिलते हैं जिन्हें समग्र से सीमा / SiMa कहा जाता है।

 

प्रवार/ Mantle


  • पृथ्वी की आंतरिक संरचना की मैं भूपर्पटी के पश्चात जो लगभग 2900 किलोमीटर मोटी परत मिलती है जिसका कुल द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का 84% है, उसे प्रवार कहते हैं। 


क्रोड /Core


  • इसी प्रकार पृथ्वी की आंतरिक संरचना में प्रवार के पश्चात, जो लगभग 3500 किलोमीटर मोटी परत मिलती है, उसे क्रोड / CORE कहते हैं ।
  • यह पृथ्वी के कुल द्रव्यमान का 15% है।
  • क्रोध का घनत्व सर्वाधिक है जो की न्यूनतम 9.9 g/cm3 से 13.01 g/cm3 है। नवीनतम शोध के अनुसार इसका घनत्व 17 ग्राम/सेंटीमीटर घन है।

 

खनिज/ MINERAL


  • पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले वह पदार्थ जिनका
  1. निश्चित भौतिक गुणधर्म एवं
  2. एक निश्चित रासायनिक मिश्रण होता है खनिज कहलाते हैं।


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शैल/ ROCK

 

यह वह प्राकृतिक खनिज है जोकि -
  1. प्रकृति की भूपर्पटी पर प्राकृतिक पिंड के रूप में मिलते हैं।
  2. भूपर्पटी पर मिलने वाले शैल विभिन्न रंग आकार एवं रासायनिक एवं भौतिक संगठन के हो सकते हैं।


अग्नि शैल/ IGNEOUS ROCK



  • वह शैल जिनका निर्माण पृथ्वी की आंतरिक संरचना से निकलने वाले लावा से होता है आग्नेय शैल कहलाते हैं।
  • इन्हें प्राथमिक शैल भी कहते हैं। 


बहिर्भेदी अग्नि शैल/ EXOGENIC IGNEOUS ROCK

  • वह अग्नि शैल जिनका निर्माण पृथ्वी की सतह पर लावा जमने के परिणाम स्वरूप होता है उन्हें बहिर्भेदी आग्नेय शैल कहते हैं ।
  • बैसाल्ट इन शैल का उदाहरण है।
  • इनकी संरचना में अत्यधिक महीन दाने मिलते हैं।
  • भारत का दक्षिण का पठार इन्हीं शैल का बना हुआ है।

 

अंतर्वेदी आग्नेय शैल/ PLUTONIC IGNEOUS ROCK


  • बहिर्भेदी शैल के विपरीत वह शैल जिनका निर्माण लावा जमने के कारण सतह के भीतर होता है उन्हें अंतर्वेदी अग्नि शहर कहतेहै।
  • इनकी संरचना में दाने तुलनात्मक रूप से बड़े होते है
  • ग्रेनाइट ऐसे ही शैल का उदाहरण है। 


अवसादी शैल/ SEDIMENTARY ROCK



  • कालांतर में अग्नि शैल
  1. क्षरद एवं
  2. अपरदन की प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जातेहै जिन्हें "अवसाद" कहतेहै।
  • यह अवसाद जब नमी की उपस्थिति में किसी एक स्थान पर निक्षेपित हो जाते हैं एवं चट्टान का निर्माण करते हैं तब उन्हें अवसादी शैल कहते हैं। 


कायांतरित शैल/ METAMORPHIC ROCK

 
  • अग्नि शैल एवं अवसादी शैल में, अत्यधिक दाब एवं ताप के प्रभाव में, रसायनिक परिवर्तन होता है तथा परिणाम स्वरूप वह कायांतरित शैल में परिवर्तित हो जाते हैं।

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शैल चक्र/ ROCK CYCLE

 
  1. अग्नि शैल,
  2. अवसादी शैल तथा
  3. कायांतरित शैल में अत्यधिक ताप एवं दाब के प्रभाव में निरंतर रेडियोएक्टिव क्षरण होता है तथा जिसके परिणाम स्वरूप यह पुनः पिघल कर द्रवित मैग्मा में परिवर्तित हो जाते हैं।
  • जहां से पुनः लावा के उत्तखलन स्वरूप अग्नि शैल का निर्माण होता है और इस प्रकार से यह चक्र निरंतर चल रहा है जिसे चट्टान चक्र या शैल चक्र कहते हैं।

प्रश्न- भूपर्पटी क्यों महत्वपूर्ण है?

  1. पृथ्वी की भूपर्पटी के दो भाग हैं स्थलीय- (Continental) एवं समुद्री (Oceanic)
  2. भूपर्पटी का निर्माण पृथ्वी के भीतरी भाग से निकलने वाले मैग्मा एवं उसके ठोस होने की प्रक्रिया के परिणाम स्वरुप हुआ और इस प्रकार हमें बताती है कि भूपर्पटी ज्वालामुखी मैग्मा का विस्तार है।
  3. स्थलीय का औसत उभार  समुद्री सतह की तुलना में 840 मीटर का है अर्थात स्थलीय सतह समुद्री सतह से 840 मीटर ऊंची है तो यहां से संकेत मिलता है कि पृथ्वी की सतह समतल नही है।
  4. समुद्री सतह की औसत गहराई 3700 मी की है घनत्व परिवर्तन के आधार पर स्थलीय सतह का घनत्व समुद्री सतह घनत्व की तुलना में कम है अर्थात भूपर्पटी का होना पृथ्वी पर घनत्व परिवर्तन और सतह का समतल ना होना बताता है
  5. भूपर्पटी के अध्ययन से पता लगता है कि स्थलीय सतह समुद्र सतह के ऊपर तैरती हुई अवस्था में मिलती है।
  6. स्थलीय सतह मुख्य रूप से ग्रेनाइट चट्टानों की बनी हुई है इसके प्रमुख रूप में क्वार्ट (Quartz) और फेलडस्पर (Feldspar) पर है 
  7. वहीं दूसरी ओर समुद्री सतह मैफिक या बेसाल्टिक (Mafic Basalt) चट्टानों की बनी होती है जिममे पायरोक्सीन एंड ओलिवीन प्रचुर मात्रा पाया जाता है अर्थात अध्ययन पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के धातु तत्व की उपस्थिति बताता है।
  8. भूपर्पटी के अध्ययन से पृथ्वी में मिलने वाले आंतरिक धातु तत्वों का अनुमान लगाया जा सकता है।
  9. स्थलीय भूपर्पटी का अध्ययन पर्वत निर्माण, पठार और मैदान की उत्पत्ति का कारण बताता है।
  10. वहीं दूसरी ओर समुद्री भूपर्पटी का अध्ययन मध्य महासागरीय कटक और ज्वालामुखी उत्पत्ति एवं अध्ययन के विषय में महत्वपूर्ण सूचनाओं देता है।
  11. दोनों प्रकार की सतह का अध्ययन पृथ्वी पर जलवायु विविधता का संकेत देता है क्योंकि स्थलीय सतह में जलवायु गतिविधियां अधिक प्रवणता वाली होती है जबकि समुद्री सतह की जलवायु गतिविधियां औसत प्रवणता वाली रहती है।
  12. समुद्री सतह पृथ्वी के सबसे बड़े अधिवास केंद्र है जहां जैव विविधता प्रचुर मात्रा में तथा सर्वाधिक मात्रा में मिलती है।
  13. वही स्थलीय सतह मानव अधिवास के लिए उपयुक्त मानी जाती है और इसके साथ ही अन्य वन्य जीव विविधता भी मिलती है।
  14. महत्वपूर्ण बिंदु में भूपर्पटी का अध्ययन हमें ज्ञात करवाता है कि किस प्रकार महाद्वीपीय प्लेट और संबंधी प्लेट संचरण करके तीन प्रकार की सीमाएं अपसारी, अभिसारी तथा रूपांतरित बनती है।
  15. जिनका विस्तार पूर्वक अध्ययन हम आने वाले अध्याय में करेंगे।
  16. लेकिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण बिंदु में भूपर्पटी पर उपस्थित चट्टानों का अध्ययन हमें पृथ्वी की- 
  • भूगर्भिक आयु की गणना,
  • उसके बनने की प्रक्रिया तथा 
  • चरणबद्ध विकास के क्रम को बताता है।


ऊपर बताए गए महत्वपूर्ण बिंदुओं के आधार पर हम भूपर्पटी के महत्व को सामान्य रूप से समझ सकते हैं।



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