मंगलवार, 7 अक्टूबर 2025

आरोरा ऑस्ट्रेलिया और आरोरा बोरियालिस क्या है? यह कैसे उत्प्रेरित होते हैं?-IN-HINDI-What-are-ARORA-AUSTRALIS-BOREALIS-TRIGGERED-औरोरा बोरियलिस की घटना किस मंडल में देखने को मिलती है-औरोरा बोरियालिस क्या है-सौर ऊर्जा क्या है-ध्रुवीय ज्योति किसे कहते हैं कैसे उत्पन्न होती है-kristian birkeland aurora borealis-सूर्य के कोरोना का तापमानसूर्य की सतह का तापमान कितना है-सूर्य की सबसे बाहरी सतह का नाम-द्रव्यमान उत्क्षेप किसे कहते हैं-coronal mass injection in hindi-चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं-चुंबकीय चक्रवात क्या है-magnetic storm in hindi-Carrington Event in hindi-भारतीय खगोलीय वेधशाला कहां स्थित है


अनुक्रमणिका-

  1. भूमिका
  2. आवश्यक तथ्य
  3. सूर्य से संबंध एवं रासायनिक प्रक्रिया
  4. पृथ्वी का सुरक्षा तंत्र एवं प्रक्रिया
  5. मुख्य सार
  6. लद्दाख में दिखाने का मूल कारण?
  7. अध्ययन लाभ
  8. सांस्कृतिक महत्व
  9. उत्तर






भूमिका

पृथ्वी अपनी आंतरिक संरचना में संकेंद्रित संरचना का उदाहरण है जहां हमको मुख्यतः तीन परत -

  1. पृथ्वी की सतह 
  2. प्रवार तथा 
  3. क्रोड के रूप में मिलती है।


आंतरिक संरचना परत में -

  1. क्रोड की आकृति गोलाकार ना होकर लंबवत अवस्था की है 
  2. जिसमें यह एक दंड के समान आकृति में दिखाई देता है और इसके दो ध्रुव उत्तर और दक्षिण बनते हैं।
  3. एवं यही उत्तर दक्षिण के ध्रुव से पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की उत्पत्ति होती है जिसको यदि हम चित्र के माध्यम से देखें तो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का आवागमन पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुव के माध्यम से होता है ना कि विषुवत रेखा स्थान या अन्य किसी स्थान के माध्यम से 
  4. चित्र इसका वर्णन करता है।

रोचक तथा आवश्यक तथ्य


  1. सूर्य प्रति सेकंड 10 लाख टन से अधिक सौर ऊर्जा कण ब्रह्मांड में छोड़ना है।
  2. इनकी गति लगभग 10 लाख मिल प्रति घंटे की होती है अर्थात 16 लाख 9000 किलोमीटर प्रति घंटा
  3. यही कारण बनता है इस "ध्रुवीय ज्योति/ Polar Light" का।
  4. इसी प्रक्रिया में जब सूर्य के यह सौर ऊर्जा कण धरती के वायुमंडल में उपस्थित अणु से टकराते हैं तब 
  5. परिणाम स्वरुप एक प्रकाश ऊर्जा का निर्माण होता है इसे ही "आरोरा (Arora)/ ध्रुवीय उषा/ ध्रुवीय ज्योति/ Polar Light" कहते हैं।
  6. इस प्रकाश का अन्वेषण नॉर्वे के वैज्ञानिक Kristian Birkeland ने किया था।
  7. आरोरा एक लैटिन भाषा का शब्द है जो की एक "भोर की देवी" को संबोधित करता है।
  8. "बोरियलिस/ Borealis" तथा "ऑस्ट्रेलिया/ Australis" शब्द ग्रीक भाषा से आए हैं जहां बोरिओलिस उत्तर का और ऑस्ट्रेलिस दक्षिण का प्रतिनिधित्व करता है।
  9. हम जानते हैं कि सूर्य का भी अपना एक वायुमंडल है जिसका व्यास लगभग 3 लाख किलोमीटर है एवं वायुमंडल की सबसे बाहरी परत को "कोरोना/ Corona" कहते हैं।
  10. सूर्य की सतह का तापमान लगभग 5500 से 6000 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य है, लेकिन 
  11. वही कोरोना का तापमान लगभग 20 लाख ° सेंटीग्रेड तक पहुंच सकता है।

  1. कोरोना से निकलने वाले इलेक्ट्रॉन/ Electron और प्रोटॉन/ Proton विद्युत आवेशित होकर एक गैस का रूप ले लेते हैं जिसे प्लाज्मा/ Plasma कहते हैं।
  2. यह प्लाज्मा, जो की गैस और द्रव्य के मध्य की अवस्था है, ही वास्तव में "सौर पवन" होती है।
  3. गमन करते समय यह प्लाज्मा कई बार मुड़ जाता है एवं "U" आकार में अर्थात एक "अर्द्ध वक्र" के साथ बाहर की ओर निकलते हैं 
  4. जब यह वक्र टूट जाता है तब उसमें से Solar Flare अर्थात "सौर अग्नि" बाहर निकलती है।
  5. यह सौर अग्नि विक्रांत विस्फोट के माध्यम से निकलते हैं जिस कारण से भारी मात्रा में "द्रव्यमान उत्क्षेप/ Mass ejection" होता है तथा इन्हें ही "कोरोना द्रव्य उत्क्षेपन/ Coronal Mass /Ejection" कहते हैं।
  6. इस द्रव्य उत्क्षेपन, जो की प्लाज्मा का बना हुआ होता है, का अपना एक चुंबकीय क्षेत्र और उसकी रेखाएं होती हैं।

प्रश्न है कि, 

"धरती अपनी सुरक्षा इस से कैसे करती है?" इसका उत्तर हमको धरती के अपने चुंबकीय क्षेत्र में मिलता है।

  1. हम जानते हैं कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की उत्पत्ति बाह्यक क्रोड से होती है 
  2. जहां पर व्हाय क्रोड के अंदर ऊर्जा की उथल-पुथल तथा बनने वाली संवहन धारा के द्वारा जब पिघला हुआ "लोहा/ Iron (Fe)" तथा "निकल/ Nikle (Ni)" गमन करते हैं तो उसके परिणाम स्वरुप पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र बनता है।
  3. सौर पवन जब धरती के संपर्क में आती है तो उसका पहला संपर्क पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र आवरण से होता है तथा 
  4. सर्वप्रथम इससे टकराकर इसके दोनों ओर से गमन करते हुए आगे की ओर निकल जाती है।
  5. लेकिन कुछ कोरोना द्रव्य उत्प्रेषण इतने अधिक प्रभावी एवं शक्तिशाली होते हैं कि वह धरती के वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं 
  6. परिणाम स्वरुप एक "चुंबकीय चक्रवात/ Magnetic Cyclone ( Storm)" उत्पन्न होता है साधारण भाषा में "चुंबकीय तूफान" कहते हैं।
  7. यह चुंबकीय चक्रवात धरती के ऊपर से गमन करता है तो एक बड़ी सी पूंछ बन जाती है
  8. जब यह पूंछ टूटती है तो इससे निकलने वाली ऊर्जा सीधे धरती से आकर टकराती है।



पृथ्वी- 

     


  1. अपने आप में दो चुंबकीय ध्रुव उत्तर एवं दक्षिणी का युग्म है
  2. यदि इस युग्म को ध्यान से देखें तो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की उत्पत्ति और प्रवेश पृथ्वी के ध्रुव से होती है विषुवत रेखा से नहीं।
  3. पृथ्वी के "परा चुंबकत्व क्षेत्र सिद्धांत/ Paleo Magnetism Region Principle" के अनुसार "आवेशित कण/ Charged Particles" चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के समानांतर ही गमन करते हैं वह उनके आर पर यह इसे स्वतंत्र नहीं होते है।
  4. अब यदि हम पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र ध्रुव को ध्यान से देखें तब चुंबकीय क्षेत्र का आवागमन पृथ्वी के ध्रुव के माध्यम से होता है विषुवत रेखा या अन्य किसी स्थान के माध्यम से नहीं, और 
  5. इस प्रकार इन्हीं रेखाओं का अनुसरण करते हुए आवेशित कण पृथ्वी के ध्रुव के निकट वायुमंडल में टकराकर रासायनिक क्रिया करते हुए प्रकाश उत्पन्न करते हैं।
  6. जोकि उत्तर और दक्षिण के देशों में आरोरा बनाकर वायुमंडल में बिखर जाती है।


Note- 

  • वस्तुत इनका क्षेत्र ध्रुवीय केंद्र से 10 डिग्री अक्षांश पर स्थित है अर्थात विषुवत रेखा से 80 अंश अक्षांश।
  • इस समय इनकी ऊंचाई 20 से 200 किलोमीटर के मध्य होती है यह उषा पृथ्वी के उषा मंडल/आयन मंडल परत में दिखाई देती है।

Note-  

  • हम जानते हैं कि सूर्य से आने वाली "एक्स-(X)" और "गामा-(γ)" किरणें किस प्रकार आयन मंडल में मिलने वाले "ऑक्सीजन-O2 तथा नाइट्रोजन-N" के साथ रासायनिक क्रिया करती है और इस प्रकार आयनीकरण की प्रक्रिया होती है। 
  • यह क्रिया मुख्ता दिन के समय होती है इसलिए आयनीकरण दिन की प्रक्रिया है 
  • रात के समय पृथ्वी पर सौर विकिरण नहीं होता इसलिए आयन मंडल की यह परत रात के समय सिकुड़ जाती है जिसका विस्तार दिन के समय हुआ था।


मुख्य सार-

  • जब इनकी ऊंचाई 20 से 200 किलोमीटर के मध्य होती है इस ऊंचाई पर इनमें उपस्थित इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन अणु के साथ अपना युग्म बनाते हैं, तथा 
  • परिणाम के स्वरूप "फोटोन/ Photon" का निर्माण होता है जो हम जानते हैं कि अपने आप में एक ऊर्जा प्रकाश का कण होता है।

  • परिणाम स्वरूप प्रत्येक रात जो भिन्न-भिन्न रंग की प्रकाश ऊर्जा हमको दिखाई देती है वह इन्हीं फोटोन की तरंग धैर्य पर निर्भर करती है।
  • ऑक्सीजन अणु की अधिकता में लाल और हरे रंग दिखाई देते हैं जबकि नाइट्रोजन अणु की अधिकता में नील तथा गहरा लाल रंग दिखाई देता हैं
  • अब चुकी सूर्य के प्रकाश की तुलना में इनका प्रकाश क्षयं हो चुका है परिणाम स्वरुप चमक कम हो जाती है और इस कारण से ध्रुवीय क्षेत्रों में यह रात के समय ही दिखाई देती है।

  • इनका सबसे अच्छा दृश्य 
  1. आइसलैंड/ Iceland,  
  2. अलास्का/ Alaska तथा 
  1. कनाडा/ Canada मैं देखने के लिए मिलता है 
  • प्रमुख रूप से यह अगस्त के अंत से अप्रैल माह के प्रारंभ तक उत्तरी गोलार्ध में दिखाई देती है।
  • इनकी समय अवधि निश्चित नहीं है निर्भर करता है कि किस मात्रा में ऊर्जा पृथ्वी पर आई है तथा ऊर्जा के संगठन के आधार पर ही इनके रंग में भी परिवर्तन मिलता है।
  • अभी तक हुए अनुसंधान के अनुसार मनुष्य के शरीर पर इसका प्रभाव न्यूनतम है किंतु 
  • इन चुंबकीय चक्रवात का सर्वाधिक प्रभाव विद्युत यंत्रों पर होता है जहां विद्युत ऊर्जा एक दूसरे के साथ क्रिया और प्रतिक्रिया करते हुए‌ क्षतिग्रस्त हो जाती है।
  • Carrington Event -1859 अब तक का सर्वाधिक शक्तिशाली चुंबकीय चक्रवात है।
  • अरोरा का सबसे अच्छा दृश्य सर्दियों की रात में रात्रि 10:00 बजे के बाद देखने के लिए मिलता है।
  • पृथ्वी के साथ ही सौरमंडल के अन्य गृह जैसे कि -
  1. मंगल
  2. बृहस्पति
  3. शनि
  4. अरुण और 
  5. वरुण पर भी देखने को मिलता है।


लद्दाख में दिखाने का मूल कारण-


  • अक्षांशीय स्थिति के आधार पर लद्दाख भारत का उत्तरतम बिंदु है अर्थात यह ध्रुवीय क्षेत्र के निकट है।
  • इसके साथ ही समुद्र तल से ऊंचाई (3000 मीटर से 6000 मीटर के मध्य) भी लद्दाख की पर्याप्त मात्रा में मिलती है 
  • जहां वायुमंडल अधिक सुगम एवं पारदर्शी है। 
  • हमने अपने अध्ययन में जाना कि चुंबकीय चक्रवात की तीव्रता उसकी ऊर्जा पर निर्भर करती है और 
  • जब अधिक तीव्रता का चक्रवात पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में प्रवेश करता है तो वह अधिक लंबे समय तक एवं आंतरिक क्षेत्र तक पहुंच बनता है।
  • इसी के परिणाम स्वरूप लद्दाख के क्षेत्र तक भी इसकी पहुंच बनी और रात्रि में हमको इस ध्रुवीय ज्योति का दर्शन हुआ। 
  • अनुमान के तौर पर पिछले दो दशक में यह सबसे बड़ा चुंबकीय चक्रवात है।
  • "भारतीय खगोलीय वेधशाला (Indian Astronomical Observatory - IAO"  जो कि लद्दाख के हैनले नामक गांव, लेह जिले में स्थित है, ने इसको अंकित किया तथा इसका अभिलेख सुरक्षित किया। 

लाभ- 

  • यह भौगोलिक घटना धरती के चुंबकीय क्षेत्र की समझ तथा ज्ञान को विकसित करती है। 
  • इन के अध्ययन से चुंबकीय चक्रवात के आगमन को लेकर अनुमान लगाया जा सकता है तथा इसकी तीव्रता के आधार पर समाधान खोजा जा सकता है जिससे कि समय रहते उपग्रहसंचार तथा उर्जा ग्रिड को बचाया जा सके।  
  • मानवीय स्वास्थ्य पर इसके क्या नकारात्मक प्रभाव है अध्ययन के माध्यम से अंतरिक्ष यात्रियों को और अधिक सुरक्षित किया जा सकता है। 


सांस्कृतिक महत्व 

  • ध्रुवीय क्षेत्र के नागरिक "Fairy Tail" नाम से एक सामाजिक उत्सव मनाते हैं जिसमें एक बड़ी सी लोमड़ी जब अपनी पूंछ झाड़ती है तब अरोड़ा प्रकाशित होगा।
  • जिस प्रकार हमारे यहां टूटते तारे को देखकर मनोकामनाएं मांगी जाती हैं ठीक यही काम आरोरा प्रकाश को देखकर "स्वीडन/ Sweden" में किया जाता है। 


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प्रश्न-आरोरा ऑस्ट्रेलिया और आरोरा बोरियालिस क्या है? यह कैसे उत्प्रेरित होते हैं?


उत्तर 

  • आरोरा ऑस्ट्रेलिया तथाआरोरा बोरियलिस जिनको हम ध्रुवीय ज्योति/ ध्रुवीय उषा के नाम से भी जानते हैं वास्तव में मुख्य रूप से पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों में दिखने वाली एक प्रकाश ऊर्जा है जिनके के बनने की प्रक्रिया में सूर्य का रासायनिक संगठन, पृथ्वी की भूआभ आकृति एवं चुंबकीय क्षेत्र तथा फोटोन ऊर्जा की प्रवाह एवं शक्ति है।
  • सूर्य वायुमंडल की सबसे बाह्य परत को "कोरोना" से "कोरोना द्रव्यमान उत्क्षेपण" के माध्यम से निकालने वाले इलेक्ट्रॉन और प्रोटोन विद्युत आवेशित कण प्लाज्मा (Plasma) अवस्था में सौर पवन के रूप में एक उच्च ऊर्जा के साथ पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से टकराते हैं।

  • पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र यहाँ पर एक रक्षात्मक प्रणाली के रूप में कार्य करता है किंतु फिर भी कुछ मात्रा में यह चुंबकीय चक्रवात ऊर्जा वायुमंडल में प्रवेश कर आयन मंडल में उपस्थित G-परत प्रोटॉन मंडल तक पहुंची है।
  •  परिणाम स्वरूप यहां वायुमंडल में उपस्थित ऑक्सीजन और नाइट्रोजन गैस अणु के साथ रासायनिक अभिक्रिया कर फोटोन ऊर्जा अणु के माध्यम से प्रकाशमान ऊर्जा की उत्पत्ति होती है जिसे उत्तरी ध्रुव पर "आरोरा बोरियलिस" तथा दक्षिणी ध्रुव पर "आरोरा ऑस्ट्रेलिया" कहते हैं।
  • फोटोन अणु की तरंग धैर्य कालअवधि सुनिश्चित करेगी जबकि ऑक्सीजन की उपस्थिति लाल एवं हरा रंग तथा नाइट्रोजन की अनुपातिक उपस्थित नीला एवं गहरे लाल रंग से आकाश को प्रकाश मान करती है।
  • यह 80 डिग्री अक्षांशों के देशों में प्रमुख रूप से देखी जाती है उदाहरण के लिए अलास्का,कनाडा तथा स्वीडन जहां स्वीडन में इसका अपना एक सांस्कृतिक उत्सव महत्व है।

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